छोड़ दिया खत लिखना
छोड़ दिया खत लिखना
डाक्टर बोलता है : खून कम है बदन में…
उसे क्या मालूम दिल सिर्फ पम्प नहीं है
न धड़कन, घड़ी की टिक टिक…
अरे नादान…
नब्ज पकड़ के कहीं, दर्द दिखता है भला
जब तक जज्ब ना पकड़ा, तुम मर्ज क्या जानो…
खून का कम होना, क्या लाजमी नहीं है
जो खून-ए-स्याही तकदीर ने दी थी,
वो तो हमने खर्च कर डाली…
कुछ वक्त होते होते,
बहुत कुछ वक्त से पहले…
जो बच गया वो तुम्हारे पम्प के काम आया
छोड़ दिया खत लिखना
क्यूँकि पढने वाले ना रहे…
वो रह गए जो हरफों में ग्रामर तलाशते हैं
वो जो जज्ब कम, और नब्ज ज्यादा मापते हैं…
छोड़ दिया खत लिखना
क्यूँकि डाक्टर बोला : खून अब कम है
उसे क्या मालूम कि अब जज्ब ही नम है…
और शायद…
शायद वो जानता है, दिल अब सिर्फ पम्प ही है…
छोड़ दिया खत लिखना…