गायत्री मंत्र
कुछ अजीब सा वाकया हुआ ।
ठमेल जाना कभी भी बहुत पसंद नही आया मुझको । हालांकि मेरे ज्यादातर दोस्त इस बात से इत्तफाक ना रखें, क्यूंकि अमूमन मेरे दोस्त मुझे अक्सर यहीं मिला करते हैं । फिर भी ये कहना जरुरी समझता हूँ, ये जगह मुझे कुछ खास आकर्षित नहीं करती, खासकर पिछले कुछ सालों से । हां बहुत सारे रेस्तरां होने के कारण आसानी जरुर होती है वहां दोस्तों से मिलने मे ।
काठमांडू का यह क्षेत्र ७० के दशक के बाद विदेशी, खासकर ककेशियन, पर्यटकों का प्रिय रहा है । पर जिस तरह पिछले कुछ सालों (करीबन एक दशक) में इस क्षेत्र मे डांस बार की संख्या बढी है, मुझे नहीं लगता है वो पर्यटक इस तरह के परिवर्तन से खुश होंगे । या यूँ समझ लिजिए कि इस परिवर्तन से मैं खुद ही खुश नहीं हूँ और पर्यटकों का नाम जोडकर पुरे इश्यू को रैशनलाइज करने की कोशिश में हूँ । शायद मेरे इस क्षेत्र मे कम आने का डांस बार के बढ्ने के साथ को-रीलेशन खोजने की मेरी कोशिश है ।
नापसंदी का आलम ये कि इसके कारण मेरा चिकुसा जाना कम हो गया । चिकुसा मेरा पसंदीदा कैफे का नाम है, और मै सबसे यही कहता हूँ कि मेरे हिसाब से दुनिया की बेहतरीन कॅाफी यहीं मिलती है । शायद इससे आपको ये भी अंदाजा हो गया हो कि मेरी दुनिया है ही कितनी बड़ी । लेकिन मान लिजिए, ये इतनी छोटी भी नहीं कि आप इसमें न आ सकें, न ही इतनी बड़ी कि इसमें मेरा अहंकार समा सके । दुनिया तो उतनी ही बड़ी होती है जितना हम समझ सकें । इसीलिए अंग्रेजों ने वाक्यांश बनाया, आउट अफ दीस वर्ल्ड । समझ से परे हो तो बस बोल दो – दीस इक्सपिरियेन्स वाज आउट अफ दीस वर्ल्ड ! कोइ बोल के दिखाए आपको कि आप असल में समझे ही नहीं ! भइ ऐसे ही अंग्रेजी साम्राज्य सूर्यास्त रहित तो था नहीं !
एक और बात यहाँ स्पष्ट होना जरुरी है कि मेरी ठमेल की नापसंदगी को नैतिकता के तराज़ू में ना तोला जाए । मैं कामातुर ना सही, मगर न मुझे नृत्य और संगीत से कोई परेशानी है ना ही नग्न लड़कियों से कोई बैर । मैं तो मात्र इस बात से हैरान हूँ कि कामुकता बेची भी जाए तो कितनी । एक बिल्डिंग मे अगर तीन-तीन डांस बार हों तो समझ लेना चाहिए कि वहाँ पर सिर्फ़ नटराज (नृत्य और संगीत के देव) नहीं बसते । वहाँ कुछ और किस्म के लोग भी रहते हैं, जो नटराज की पूजा तो बिल्कुल नहीं करते ।

मोरालीटी का प्रश्न यहाँ उठाने की ही कोशिश है, और न ही गुंजाइश । इसीलिए उसको उन पे छोड़ते हैं, जिन को इस विषय में रुचि हो । हम बहरहाल बात कर रहे थे एक वाकये की ।
तो हुआ यूँ कि हमें कुछ मित्रों के साथ चिकुसा जाने का अवसर मिला । बड़ी बेतकल्लुफी से हमने वहाँ दिन गुजार दिया । हमारी खासियत रही है कि दिन भले ही बेगारी मे गुजरे, बेकारी में नहीं गुजरनी चाहिए । इसका सीधी भाषा में अर्थ ये होता है कि मैं अगर कुछ ना कर रहा हूँ, तो कुछेक मेरे दोस्तों को भुगतना तो है ही । उनकी इनायत ये कि वो शिकायत नहीं करते । वरना साहब, हमें झेलने की ताकत रखने वाले लोग बेदिमाग हों, मुश्किल है मानना ।
शाम के छ बजने पर जब हम सबसे फारिग हो के चिकुसा से निकले, थोड़ी दूर पर एक अजीब सी आवाज़ कानों से टकराइ । आश्चर्य नहीं होता अगर ‘चिट्टीयाँ कलाइयां’, ‘डान्स बसन्ती’ या ‘ठर्की छोकरो’ फुल वाल्युम में बज रहा होता । क्योंकि पिछले दिनों यहाँ ये सुनना आम बात है । इतने सालों मे ठमेल में मैंने तिब्बती अगरबत्ती की महक के साथ आता हुइ ‘ओम माने पद्मे हुम’ का जाप भी बहुत बार सुने हैं, मगर ‘ओम भूर्भुवस्वह’ कानों मे पड़ते ही कदम ठीठक गए । जी हां, गायत्री मंत्र का उच्चारण !
चारों ओर आँख घुमाया । दरअसल घुमाते हम कान हैं, पता लगाने कि आवाज आखिर है कहाँ से । एक क्षण को दिमाग सुन्न सा हो गया । आवाज थी एक डान्स बार से ! शायद अभी उनके काम का वक्त शुरु नहीं हुआ था । शायद अभी वक्त था, धर्म का !
ये देख के बहुत पहले सुनी एक कहानी याद आइ । लगा कि उस कहानी का कुछ अर्थ भी समझ में आया हो । कहानी कुछ यूं है :
कहीं एक जगह एक धर्मात्मा (तपस्वी) और एक वेश्या आमने सामने के घर मे रहते थे । दोनो एक दूसरे को देखते थे और जानते भी थे । मगर दोनो ने कभी एक दूसरे से बात नही की थी । वक्त बीता, दोनों को बुढ़ापा आया और संयोगवश दोनों एक ही दिन मृत्युशय्या पे गए । दोनों की मृत्यु भी करीब साथ साथ ही हुई ।
मृत्यु के पश्चात यमराज के दरबार ने निर्णय लिया कि तपस्वी को नर्क और वेश्या को स्वर्ग दिया जाए । तपस्वी को ये बात हजम नहीं हुई और उसने यमराज से शिकायत की और बोला : मैने जीवन भर धर्म की सेवा की है । इस नीच वेश्या ने तो अपने देह का व्यापार किया और सम्भोग विलास में जीवन खर्च किया । मुझे स्वर्ग और इसे नर्क मिलना चाहिए ।
तपस्वी होना कोइ छोटी बात तो है नहीं । उनका भी अपना क्लाउट होता है, खासकर ऐसी जगहों मे । तुरन्त चित्रगुप्त को बुलाया गया और गलती की स्पष्टीकरण के लिए बोला गया ।
चित्रगुप्त ने यमराज को जवाब दिया: कहीं कोई गलती नहीं है महाराज । दोनों को अपने कर्मो के हिसाब से ही फल मिला है । ये वेश्या जीवन भर इन तपस्वी को देखकर जीती रही और ये तपस्वी भी पूरी जिन्दगी इसी औरत को देखकर जीते रहे ।
बात तो नजर की है जनाब ! वही आँख धर्म कराती है, और वही आँख पाप । फर्क है तो बस नजर का, और नजरिए का !