बारिश और याद
टिपिर टिपिर
बारिश की बूँदे
रात की खामोशी को जाने कहाँ छोड आइ
वैसे, बारिश से पहले भी नींद थी कहां आइ
आइ थी तो याद
एक खयाल, कि
क्या अब भी बादल की आवाज पे
अकेले में डर के सिमट जाते हो ?
लिहाफ मे मुँह छुपा के
आँख के मुंदने पर मुझे सामने पाते हो ?
और बारिशविहिन रातों मे
मेरा फोटो देखकर
घन्टों मुस्कुराते हो ?
ये तेरी मुस्कुराहट क्यूँ रुलाती है
तेरी उनींदी आँखें मुझे क्यूँ जगाती हैं
समझ नहीं आता
कि मुझको
इन्तजार है किस का
बारिश के रुकने का, या पौ फटने का…